सोलह साल के अक्षय कुमार सिंह, जो नेशनल लेवल का तैराक बनने की ट्रेनिंग ले रहे थे. 5 मई 2009 की रात बिजनौर, उत्तर प्रदेश में एक बारात में नाच रहे थे. तभी अचानक बैंड बंद हो गया. जब अक्षय के पिता राकेश सिंह अचानक सन्नाटे का कारण जानने गए, तो उन्हें बताया गया कि उनके बेटे और बारात में शामिल एक अन्य व्यक्ति को ट्रक ने कुचल दिया है. ट्रक ड्राइवर यह जानते हुए भी कि उसने दो लोगों को कुचल दिया है, मौके से भाग गया.
राकेश सिंह उस त्रासदी को याद करते हुए कहते हैं, ‘उसका चेहरा बुरी तरह कुचला हुआ था और मैंने शर्ट से उसकी पहचान की.’ इस हादसे ने उनके परिवार को हमेशा के लिए बदल दिया.
बेटे को न्याय दिलाने की लड़ाई
पुलिस ने FIR दर्ज कर ली, लेकिन बस इतना ही किया. एक टॉप एनर्जी PSU में इंजीनियर के तौर पर काम करने वाले राकेश सिंह ने अपने बेटे की मौत को भारत में लगातार बढ़ती हिट-एंड-रन लिस्ट में दर्ज एक और मौत का आंकड़ा बनने नहीं दिया. इस तरह एक पिता की अपने बेटे के हत्यारे को खोजने की लड़ाई अकेले शुरू हो गई. हालांकि वह कामयाब रहे, लेकिन सिस्टम ने उन्हें नाकाम कर दिया.
अभी अंधेरा भी नहीं हुआ था कि 14 जुलाई 2025 को पंजाब के जालंधर में अपने पैतृक गांव में सड़क पार करते वक्त हुए हादसे में दिग्गज मैराथन रनर फौजा सिंह की मौत हो गई.
जबकि ज्यादातर हिट-एंड-रन मामलों की जांच कभी नहीं की जाती और पीड़ित परिवारों को समाधान नहीं मिल पाता, 114 वर्षीय मैराथन रनर की मौत पर मीडिया का फोकस होने से पुलिस को कार्रवाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा. पुलिस ने ड्राइवर को गिरफ्तार कर लिया, जो कनाडा से लौटा एक युवक था.
भारत हिट एंड रन की कैपिटल कैसे बना?
आंकड़े बताते हैं कि जालंधर रूरल इलाके में, जहां फौजा सिंह की मौत हुई थी, सड़क हादसों में हुई सभी 117 मौतें हिट एंड रन के मामले थे. अगर यह चौंकाने वाला है, तो एक और चौंकाने वाली बात है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में, सड़क हादसों में होने वाली 49% मौतें हिट एंड रन के मामलों में होती हैं.
भारत न सिर्फ दुनियाभर में सड़क हादसे में होने वाली मौतों की संख्या सबसे आगे है, बल्कि यहां सबसे ज्यादा लोग हिट-एंड-रन मामलों में मारे जाते हैं, जहां ड्राइवर पीड़ितों की मदद करने की कोशिश किए बिना ही मौके से फरार हो जाते हैं.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के ताजा आंकड़ों के अनुसार, 2022 में भारत में ऐसे हादसों में 30,400 से ज़्यादा लोग मारे गए हैं. साल 2022 का आंकड़ा पिछले साल की तुलना में 17% ज्यादा है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2022 में भारत में एक ही साल में 1.68 लाख से ज़्यादा मौतें सड़क हादसों में हुई हैं.
VIP कल्चर और SUV मेंटलिटी
लापरवाह ड्राइवरों, पैदल यात्रियों और बाइक सवारों से लेकर खराब सड़क डिजायन, इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी और लगभग जीरो नियम-कानून तक, विशेषज्ञों ने उस डेडली कॉकटेल का खुलासा किया है जो भारत को हिट-एंड-रन कैपिटल में बदल रहा है. उनका कहना है कि ‘SUV मेंटलिटी’, वीआईपी कल्चर और करप्ट सिस्टम ऐसे लोगों को और भी ज़्यादा हिम्मत देता है.
भारत में सड़क हादसों की फोरेंसिक जांच सुनने को नहीं मिलती. कोई यह जानने की कोशिश नहीं करता कि उस पल में असल में क्या हुआ था और हमेशा ड्राइवर ही दोषी ठहराया जाता है. रवैया सिर्फ़ दोष मढ़ने का होता है, न कि पूरी जांच के बाद जवाबदेही तय करके जान-माल के नुकसान को कम करने की दिशा में कदम उठाने का.
भारत में हादसों के मामले में हमेशा बड़े लोगों को ही दोषी ठहराया जाता है.
हादसों की असल वजह जानने की कोशिश नहीं
क्या कोई गड्ढा था जिसकी वजह से ड्राइवर ने गाड़ी मोड़ी और एक बाइक सवार को टक्कर मार दी? या क्या वह नशे में था और तेज़ रफ़्तार से गाड़ी चला रहा था? क्या कोई बच्चा बॉल का पीछा करते हुए सड़क पर दौड़ा और टक्कर खा गया या फिर क्या ड्राइवर आवारा मवेशियों को बचाने की कोशिश में कंट्रोल खो बैठा?
कोई जवाब नहीं मिलेगा. क्योंकि कोई यह सब जानने की कोशिश ही नहीं कर रहा है.
यह भी सामने आया है कि पुलिस खुद को जांच के झंझट से बचाने के लिए हादसों को हिट-एंड-रन के रूप में दर्ज करती है. और जब कभी-कभार उन्हें आरोपी मिल भी जाते हैं, तो पैसा तेज़ी से हाथ बदल जाता है और मृतक न्याय के लिए तरसते रह जाते हैं.
हत्यारों को बचाता है एक भ्रष्ट सिस्टम
यह महसूस करते हुए कि पुलिस को यह जानने में कोई दिलचस्पी नहीं है कि उनके बेटे की हत्या किसने की, राकेश सिंह ने हत्यारे ड्राइवर को खुद ही ढूंढने का फैसला लिया.
पहला सबूत यह था कि यह अवैध रूप से खनन की किए गए माल से भरा हुआ ट्रक था.
66 वर्षीय राकेश सिंह इंडिया टुडे डिजिटल को बताते हैं, ‘अगले कुछ दिनों तक मैं उत्तराखंड में खदानों, सड़क किनारे बने ढाबों पर गया, जहां ट्रक ड्राइवर खाना खाते थे, ट्रक चालकों के साथ यात्रा की और वाहनों की संख्या जांचने के लिए वेट ब्रिजों पर गया.’
पिता ने बेटे के हत्यारे को खोज निकाला
राकेश सिंह ने मजबूत इरादों के साथ मामले की जांच की और सिर्फ़ 15 दिनों में हत्यारे ड्राइवर, जो ट्रक का मालिक भी था, और उसके घर का पता खोज निकाला. उन्होंने पुलिस को सारे दस्तावेज़ी सबूत मुहैया करा दिए.
उन्होंने कहा, ‘लेकिन वह जमानत पर बाहर थे और 2012 में शराब के अत्यधिक सेवन की वजह से अस्पताल में उनकी मौत हो जाने के बाद मामला बंद कर दिया गया.’
रोड सेफ्टी के लिए लड़ने वाले कार्यकर्ता बनने के लिए नौकरी छोड़कर कानूनी पढ़ाई करने वाले राकेश सिंह कहते हैं, ‘अगर मैं अकेले ही 15 दिनों में ड्राइवर को ढूंढ सकता हूं, तो पुलिस अपने सिस्टम के साथ हिट एंड रन के अपराधियों का पता क्यों नहीं लगा सकती.’
हिट-एंड-रन के मामले ‘ड्राई केस’ क्यों?
दिल्ली में ट्रैफिक और जांच के प्रबंधन की देखरेख करने वाले एक रिटायर्ड सीनियर पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर इंडिया टुडे डिजिटल को बताया कि हिट-एंड-रन हादसों के मामलों को पुलिस की भाषा में ‘ड्राई केस’ कहा जाता है, क्योंकि इसमें कोई पैसा नहीं कमाया जाता है.
उन्होंने स्वीकार किया कि पुलिसकर्मी मामले की आगे जांच से बचने के लिए सड़क हादसों को हिट-एंड-रन के तौर पर क्लासीफाई करते हैं.
रिटायर्ड पुलिस अधिकारी ने खुलासा किया, ‘और जब वे अपराधी का पता लगा लेते हैं, तो वे अपराधी को बचाने और पैसा कमाने के लिए शिकायतकर्ता या पीड़ित के परिवार को मामले को आगे बढ़ाने से रोकते हैं.’
इंडिया टुडे डिजिटल ने जिन विशेषज्ञों से बात की, उनमें से ज्यादातर ने बताया कि नियम-कानून लगभग जीरो है और कानून के प्रति डर का अभाव है, जो भारत में हिट एंड रन के मामलों में बढ़ोतरी के दो प्रमुख कारण हैं.
हादसे के बाद क्यों भाग जाते हैं ड्राइवर?
रोहित बलूजा, एक विशेषज्ञ जिन्होंने भारतीय सड़कों को सुरक्षित बनाने के लिए दो दशक से अधिक समय बिताया है और अब फोरेंसिक जांच में कानून प्रवर्तन अधिकारियों को ट्रेनिंग दे रहे हैं, वे मनोवैज्ञानिक और प्रणालीगत दोनों कारणों की लिस्ट देते हैं, जो हादसों के बाद ड्राइवरों को भागने के लिए मजबूर करते हैं.
बलूजा ने इंडिया टुडे डिजिटल को बताया, ‘कानून का डर न होना, ड्राइवरों की कानूनी जिम्मेदारी के बारे में जागरूकता की कमी, कानूनी प्रक्रियाओं में फंसने का डर, रोड यूजर्स के प्रति लापरवाह रवैया, वीआईपी कल्चर, साथ ही स्थानीय लोगों द्वारा मॉब लिंचिंग में मार दिए जाने का डर ड्राइवरों को एक्सीडेंट साइट से भागने पर मजबूर करता है.’
फरीदाबाद स्थित रोड ट्रैफिक एजुकेशन के प्रेसिडेंट और ट्रैफिक मैनेजमेंट कॉलेज के डायरेक्टर डॉ. बलूजा का कहना है कि उचित ड्राइविंग लाइसेंस न होना, कम उम्र का होना, नशे या शराब के नशे में वाहन चलाना जैसे अन्य कारण भी चालकों को दुर्घटना स्थल से भागने पर मजबूर कर सकते हैं.
भीड़ तंत्र और मॉब लिंचिंग का डर
स्थानीय लोगों या दुर्घटना स्थल पर मौजूद भीड़ द्वारा हमला किए जाने का डर भारत में असलियत है, जहां भीड़ की मानसिकता हावी है, और यही कारण है कि ड्राइवर भाग जाते हैं, भले ही वे पीड़ित की मदद करना चाहते हों.
एनआईटी त्रिची में सड़क सुरक्षा और यातायात इंजीनियरिंग के विशेषज्ञ, सहायक प्रोफेसर ऋत्विक चौहान कहते हैं, ‘भीड़भाड़ वाली जगहों से ड्राइवर भीड़ के हमले और हिंसा के डर से भाग जाते हैं. कानूनी पहलुओं की जानकारी न होने के कारण ही वे दुर्घटनाओं के बाद भीड़-भाड़ वाली जगहों से भाग जाते हैं.’ वे आगे कहते हैं, ‘लोग अपेक्षाकृत नए गुड समैरिटन लॉ से अनजान हैं.’
यहां तक कि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 134, जो दुर्घटनाओं में शामिल वाहनों के ड्राइवरों और अन्य जिम्मेदारों के कर्तव्यों को बताती है, में भी ‘भीड़ के गुस्से’ का जिक्र है.
भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 106 उस व्यक्ति के बीच अंतर करती है जो जल्दबाजी या लापरवाही से किसी की मौत की वजह बनता है और इसकी रिपोर्ट करता है, और वह व्यक्ति जो ‘घटना के तुरंत बाद पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट किए बिना भाग जाता है.’
जबकि ऐसे जानलेवा हादसों की वजह बनने वाले और उनकी रिपोर्ट करने वालों के लिए अधिकतम जेल की अवधि 5 साल है, हिट-एंड-रन मामलों में शामिल ड्राइवरों के लिए सजा 10 साल तक बढ़ा दी गई है.
ट्रक ड्राइवरों के विरोध के बाद बीएनएस की यह धारा स्थगित कर दी गई है. पहले भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में हिट-एंड-रन मामलों से निपटने के लिए कोई स्पेशल कानून नहीं था.
विशेषज्ञों का सुझाव है कि अगर हादसों में शामिल ड्राइवर किसी खतरे के कारण घटनास्थल छोड़ने को मजबूर हो जाएं, तो उन्हें निकटतम पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करनी चाहिए.
ट्रैफिक मॉनिटरिंग की कमी और खराब रोड डिजायन
विशेषज्ञों का कहना है कि हिट-एंड-रन की घटनाएं वैक्यूम में नहीं होतीं, बल्कि ये कई विफलताओं का नतीजा होती हैं.
पॉपुलर अल्ट्रा-रनर शाजन सैमुअल ने एक्स पर फौजा सिंह को श्रद्धांजलि देते हुए कहा, ‘भारत में जॉगिंग करना, साइकिल चलाना, पैदल चलना या सड़क पार करना भी जोखिम भरा है. हम पार्कों में नहीं दौड़ सकते, कोई डेडिकेटेड ट्रैक नहीं हैं, इसलिए हमें दुआ करनी चाहिए और दौड़ना/साइकिल चलाना चाहिए ताकि हम किसी की चपेट में न आ जाएं.’
बेहतर रोड डिजाइन सड़क हादसों को कम करने में बड़ी भूमिका निभा सकती है.
रिटायर्ड पुलिस अधिकारी कहते हैं, ‘भारत में सड़कें मोटर ड्राइवरों को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं, न कि पैदल यात्रियों और साइकिल चालकों जैसे असुरक्षित रोड यूजर्स को. दुनियाभर में सड़कों पर ट्रैफ़िक सिग्नल लगे होते हैं. भारत में हमें ट्रैफिक लाइट फ्री सड़कों और ओवरब्रिजों का शौक है.’
एनआईटी त्रिची के ऋत्विक चौहान बताते हैं कि सड़क हादसों के मुख्यतः तीन कारण होते हैं. चालक की गलतियां, रोड यूजर्स की गलतियां और सड़क का बुनियादी ढांचा.
उचित रोशनी, साइन और मार्किंग के बिना सड़कें हादसों का एक प्रमुख कारण हैं. रोड सरफेस की स्थिति, उदाहरण के लिए गड्ढों की वजह से हर साल दर्जनों हादसे होते हैं.
मौत का जाल हैं भारत की सड़कें
जहां ईयरपॉड्स लगाए और चलती गाड़ियों के बारे में अनजान, सड़क पार करने वाले लोग एक अतिरिक्त जोखिम बन गए हैं, वहीं बड़ी कारों और घमंड वाले ड्राइवर इस खतरे को और बढ़ा देते हैं. बड़ी कारों द्वारा सड़क पर जगह घेरने और जोखिम भरे तरीके से गाड़ी चलाने की मानसिकता एक बड़ा जोखिम है.
रिटायर्ड पुलिस अधिकारी इसे ‘थार, फॉर्च्यूनर और स्कॉर्पियो वाली मेंटलिटी’ कहते हैं. लेकिन वे हमेशा ‘बड़े को बुरा’ कहने से सावधान करते हैं. वे कहते हैं, ‘टैंगो के लिए दो लोगों की ज़रूरत होती है.’
ऋत्विक चौहान एक व्यक्तिगत घटना का जिक्र करते हुए बताते हैं कि पैदल चलने वाले लोग भी इसके लिए जिम्मेदार हैं.
वे कहते हैं, ‘मेरे एक दोस्त के साथ सड़क हादसा हुआ था, जिसमें एक पैदल यात्री गंभीर रूप से घायल हो गया था. बाद में पता चला कि वह बहुत ज़्यादा नशे में था और स्टेट हाइवे के बीचों-बीच चल रहा था. लेकिन ड्राइवर को कानूनी पचड़ों का सामना करना पड़ा.’
रोड सेफ्टी एक्सपर्ट बलूजा ज़ोर देकर कहते हैं कि सही फोरेंसिक जांच से सड़क हादसों में शामिल ड्राइवरों और वाहनों की पहचान हो सकती है. दोषी लोगों को दंडित करना स्वाभाविक रूप से उपाय साबित होगा.
हिट-एंड-रन या हादसों की आड़ में हत्या?
राकेश सिंह, जिन्होंने अपने बेटे की हत्या करने वाले ड्राइवर का पता लगाया, का भी कहना है कि अनट्रेंड पुलिसकर्मी सिस्टम में एक बड़ी कमी हैं.
वे कहते हैं, ‘पुलिसकर्मियों को फोरेंसिक जांच करने के लिए ट्रेंड नहीं किया जाता. एक चीज जो उन्हें नौकरी के दौरान सिखाई जाती है, वह है भ्रष्टाचार.’
यह सिर्फ हादसे में शामिल वाहन और ड्राइवर का पता लगाने के बारे में नहीं है, बल्कि हादसे के इरादे का भी पता लगाने के बारे में है.
भारत के पहले सड़क फोरेंसिक जाँच संस्थान की स्थापना करने वाले बलूजा कहते हैं कि वाहनों के गिरे हुए टुकड़े, जैसे हेडलाइट का शीशा, और उखड़े हुए पेंट का इस्तेमाल हादसे का पता लगाने के लिए किया जा सकता है. टायर के निशान हादसे के दौरान ड्राइवर के बर्ताव को समझने में मदद कर सकते हैं.
उन्होंने बताया, ‘स्किड मार्क और टायर के निशान जांचकर्ताओं को यह निर्धारित करने में मदद कर सकते हैं कि क्या वाहन के ड्राइवर ने टक्कर से पहले ब्रेक लगाया था और बचने की कोशिश की थी, स्पीड बनाए रखी थी, या यहां तक कि गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी थी.’
विशेषज्ञों का कहना है कि जांच अधिकारियों को हादसे में शामिल व्यक्ति का पता लगाने के लिए आस-पास की कैमरा फुटेज, कार रिपयरिंग शॉप और अस्पतालों की जांच करनी चाहिए.
बलूजा ने कहा कि जांचकर्ताओं को यह भी पता लगाना होगा कि क्या हिट-एंड-रन घटना वास्तव में एक हादसा था या ड्राइवर का कोई दुर्भावनापूर्ण इरादा था.
यह एक दिलचस्प अवलोकन है, क्योंकि यह देखा गया है कि हत्यारे हत्याओं को सड़क हादसा बताकर पेश करने की कोशिश करते हैं.
मई में, संभल में उत्तर प्रदेश पुलिस ने एक मामले का खुलासा किया, जिसमें एक गिरोह ने दो लोगों की हत्या कर दी थी और बीमा भुगतान का दावा करने के लिए इसे हिट-एंड-रन मौत के रूप में पेश किया था.
हिट-एंड-रन के मामले कैसे होंगे कम?
हिट-एंड-रन मामलों की वैज्ञानिक तरीके से सही जांच के अलावा, डिजिटल डिवाइस का इस्तेमाल अपराधियों पर नज़र रखने और उन्हें दंडित करके उदाहरण पेश करने के लिए भी किया जा सकता है.
चौहान कहते हैं, ‘हमारे पास फ़ास्टटैग हैं, जो यह जानकारी देते हैं कि कौन सा वाहन किस टोल प्लाज़ा से गुज़रा है, और अब नेशनल हाइवे पर कैमरे लगाए जा रहे हैं. कैमरों का इस्तेमाल करके कवरेज एरिया और मॉनिटरिंग पॉइंट को बढ़ाने से हाइवे पर हादसों की स्थिति में संदिग्धों पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी.’
रोड सेफ्टी के सहायक प्रोफेसर का कहना है कि कैमरों को ऑटोमेटिक नंबर प्लेट रिकग्निशन सिस्टम (ANRS) के साथ इंटीग्रेटिड किया जाना चाहिए, ताकि वे ऑटोमेटिक तरीके से वाहनों का पता लगा सकें और हाई सिक्योरिटी रजिस्ट्रेशन प्लेटों की जांच से एएनआरएस को वाहनों का पता लगाने में मदद मिलेगी.
यह सब तभी मुमकिन होगा जब सड़क हादसों और उनमें होने वाली मौतों को कम करने की इच्छाशक्ति हो, जिसमें हिट-एंड-रन हादसे भी शामिल हैं.
यूरोपीय देशों, जापान और संयुक्त अरब अमीरात सहित कई देशों ने सड़क हादसों और मौतों को कम करने में सफलता हासिल की है. भारत ऐसा क्यों नहीं कर सकता, इसका कोई कारण नहीं है.
तेज गति के साथ विकसित होते भारत के लिए सड़क हादसों में होने वाली चोटों और मौतों की भारी संख्या का आर्थिक नुकसान भी है. रोड ट्रांसपोर्ट और हाइवे मंत्रालय ने 2023 की एक स्टडी का हवाला देते हुए कहा, ‘सड़क हादसों की सामाजिक-आर्थिक लागत देश की जीडीपी का करीब 3.14% है.’
भ्रष्ट सिस्टम और इंसानी जानों की बेरुखी के कारण भारत हिट-एंड-रन का देश बन गया है. हम अब और इंतज़ार नहीं कर सकते और हत्यारों को बिना किसी सज़ा के बचते हुए नहीं देख सकते.
बेटे की मौत का दुख झेल रहे राकेश सिंह को जासूस बनकर यह पता लगाने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए था कि उनके बेटे की हत्या किसने की. यह तो कानून प्रवर्तन एजेंसियों का काम है, जिन्हें टेक्सपेयर्स के पैसे से सैलरी मिलती है. उनका यह कर्तव्य और ज़िम्मेदारी है. सरकार का भी यही कर्तव्य है.
एक गंभीर चेतावनी. इस आर्टिकल को पढ़ने में आपने जो 10 मिनट बिताए, उसी बीच भारत में सड़क हादसों में तीन मौतें हुईं. इन परिवारों के लिए पूरी जांच और सज़ा की संभावना कम ही है.
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