Delhi Yamuna – 1920 तक पीने-नहाने लायक थी नदी तो फिर कैसे बिगड़ी सूरत… यमुना में ‘जहर’ घुलने का पूरी क्रोनोलॉजी समझिए – yamuna river politics in delhi election chronology of poison dissolving in Yamuna nadi ntcpvp

Delhi Yamuna – 1920 तक पीने-नहाने लायक थी नदी तो फिर कैसे बिगड़ी सूरत… यमुना में ‘जहर’ घुलने का पूरी क्रोनोलॉजी समझिए – yamuna river politics in delhi election chronology of poison dissolving in Yamuna nadi ntcpvp

राजधानी में दिल्ली में मतदान हो चुके हैं, परिणाम का इंतजार है और इस बार चुनाव का हॉट टॉपिक रही यमुना नदी की गंदगी. ये यमुना का दुर्भाग्य ही है कि, जिसने हजारों सालों से दिल्ली को आबाद रखने में सबसे अहम भूमिका निभाई, वही यमुना अब बर्बाद हो चुकी है. दिल्ली के 22 किलोमीटर के दायरे में ये 18 बड़े नालों का मल-जल खुद में भरने को मजबूर है और इसका बोझ नदी पर इतना ज्यादा है, अब नदी ने बहना तो लगभग बंद ही कर दिया है. वह भीतर ही भीतर थम चुकी है और जो प्रवाह आपको इसमें नजर आ रहा है वह सिर्फ ऊपरी है और वह भी नालों के पानी का तेज बहाव भर ही है.  

यमुना अब नहीं है, दिल्ली में उसका केवल नाम ही बाकी है और बेबसी की बात ये है कि इस नाम को भी सिर्फ चुनावी काल में जिंदा किया जाता है. इस चुनाव में भी यमुना का नाम जिंदा हुआ है, लेकिन इसके साथ जहर और केमिकल वाली राजनीति भी जुड़ चुकी है. यमुना में ये जहर कहां से आया और इसकी शुरुआत कहां से कैसे हो जाती है, इस पर डालते हैं एक नजर…

वजीराबाद से ही शुरू होती है बदहाली की कहानी

राजधानी दिल्ली में एक जगह है वजीराबाद. ये दिल्ली में यमुना का एंट्री पॉइंट है. यही वो जगह है जहां से नदी दिल्ली में प्रवेश करती है और इसी जगह पर बना बैराज यमुना को आगे बढ़ने से रोक देता है. वज़ीराबाद के एक तरफ यमुना का पानी बिल्कुल साफ और दूसरी ओर बेहद काला. इसी जगह से नदी का सारा पानी उठा लिया जाता है और जल शोधन संयत्र के लिए भेज दिया जाता है ताकि दिल्ली की जनता को पीने का पानी मिल सके. नदी की बदहाली की कहानी भी यहीं से शुरू हो जाती है.

यमुना नदी

मुगल काल में यमुना का महत्व
हालांकि हमेशा से ऐसा नहीं था. इतिहास कहता है कि मुगल पीरियड में ही नहीं, बल्कि उससे पहले भी यमुना नदी दिल्ली में स्थिर नगरीय सभ्यता के बसने की बड़ी वजह रही है. इतिहासकार पुष्पेश पंत बताते हैं कि यमुना नदी सिर्फ एक बहता हुआ जल का एक सोता भर नहीं थी, बल्कि यह सदियों से चली आ रही सभ्यता की संरक्षक भी थी. शाहजहां ने जब लालकिला बनवाया और नए शहर शाहजहानाबाद की नींव रखी तो पहले तो उसने लाल किले को गहरी खाइयों से घिरवाया, जिनमें नहरों से लाकर यमुना का पानी भरा गया.  

यमुना से निकली नहर से बुझती थी दिल्ली की प्यास
फिर दूसरी चुनौती थी प्यास, और इसका इंतजाम भी यमुना में ही मिला. दिल्ली में यमुना के योगदान पर लिखी गई किताब ‘बूंदों की संस्कृति’ में इस बात का जिक्र मिलता है कि, शाहजहां ने आर्किटेक्ट, अली मर्दन खां को खासतौर पर सिर्फ इस काम के लिए लगाया कि वह यमुना का पानी शहर से होते हुए किले तक पहुंचाए. अली मर्दन खां ने यमुना के पानी को नहर के जरिए महल के अंदर तक पहुंचाया, इस नहर को फैज नहर के नाम से जानते थे. नहर ने शाहजहानाबाद के कुओं, बावड़ियों के जलस्तर को बढ़ाया और फिर लालकिले में भी पानी की आपूर्ति की, जिसका प्रयोग पीने के साथ रोज के उपयोग में और फिर किले को ठंडा रखने में भी किया जाता था.

ब्रिटिश पीरियड में भी साफ थी यमुना

1843 में भी शाहजहानाबाद में 607 कुएं थे जिनमें 52 में मीठा पानी आता था. बाद में बहुत से कुएं बंद कर दिए गए, क्योंकि इनमें गंदी नालियों का पानी भर जाता था. 1890 में चारदीवारी वाले शहर के अंदर इसका पानी आना बंद हुआ और यह एक तरह से शुरुआत थी, जब यमुना नदी में भी बड़े पैमाने पर गंदगी डाली जाने लगी थी और नदी ने प्रदूषित होना शुरू कर दिया था. फिर भी ब्रिटिश पीरियड में साल 1920 तक दिल्ली के कई गांवों में यमुना का पानी सीधे तौर पर पीने के उपयोग में लाया जाता था और इसके किनारे लोग नहाते भी थे.

कैसे बढ़ता गया यमुना में प्रदूषण?
यमुना में प्रदूषण कोई एक दिन में नहीं बढ़ा, लेकिन इसे ऐसे समझा जा सकता है कि सबसे पहले नदी के पानी का स्वाद बदला और यह धीरे-धीरे खारा होता गया. तटीय इलाकों में दूषित और रासायन युक्त जल जनित बीमारियों की शुरुआत 60 के दशक में हो चुकी थी, लेकिन पहली बार इस पर गंभीर वैज्ञानिक अध्ययन और आधिकारिक रिपोर्ट 1970 के दशक में सामने आई थी. 1977 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की स्थापना के बाद यमुना के जल की गुणवत्ता को लेकर नियमित जांच शुरू हुई, क्योंकि इस दौरान यमुना में बढ़ता प्रदूषण सामने आ चुका था और इसके दुष्परिणाम भी दिखने लगे थे.

जनसंख्या बढ़ी तो बढ़ने लगा प्रदूषण

1980 के दशक में जब दिल्ली का औद्योगीकरण हुआ और इसके बाद जनसंख्या तेजी से बढ़ी, तब यमुना में प्रदूषण गंभीर रूप से बढ़ने लगा. 1993 में सरकार ने यमुना एक्शन प्लान (YAP) लॉन्च किया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि नदी की स्थिति चिंताजनक हो चुकी थी. हालांकि, ऐतिहासिक रूप से देखें तो 1950-60 के दशक तक में भी यमुना का पानी दिल्ली में पीने योग्य माना जाता था, लेकिन 1970 के दशक में औद्योगीकरण, शहरीकरण और सीवेज के अंधाधुंध बहाव के कारण पहली बार इसके जल की गुणवत्ता का स्तर खतरनाक रूप से गिरने लगा.

यमुना में बढ़ते प्रदूषण को लेकर साल 1986 में चार शोधकर्ताओं ने जांच के आधार पर रिसर्च पेपर जारी किया था. एचसी अग्रवाल, पीके मित्तल, केबी मेनन और एमके पिल्लई के इस रिसर्च पेपर में ये सामने आया था कि, 1978 में जब दिल्ली में यमुना नदी के चार विभिन्न स्थलों से पानी के सैंपल लिए गए थे, तब इसमें DDT की भारी मात्रा पाई गई थी. सबसे अधिक कुल डीडीटी सांद्रता वजीराबाद के डाउनस्ट्रीम स्थल पर पाई गई थी, जहां नदी के जल में नजफगढ़ का नाला आकर मिलता था. इस नाले में एक डीडीटी फैक्ट्री सहित अन्य उद्योगों के अपशिष्ट भी मिलते थे.

यमुना नदी

डी.डी.टी. (DDT) यानी डाइक्लोरो-डाइफिनाइल-ट्राइक्लोरोएथेन एक रासायनिक कीटनाशक (pesticide) है, जिसे 1940 के दशक में कीड़ों को मारने के लिए विकसित किया गया था. इसे मुख्य रूप से मलेरिया और टाइफस जैसी बीमारियों को फैलाने वाले मच्छरों और अन्य कीटों को नियंत्रित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था.

इसी तरह, साल 2010 में एक और शोधार्थी अनिल कुमार मिश्रा ने भी इसी विषय पर रिसर्च पेपर लिखा था. ‘A River about to Die: Yamuna’ शीर्षक से प्रकाशित इस रिसर्च पेपर में दिल्ली में यमुना के बिगड़े हाल को विषय बनाया गया था. रिसर्च पेपर में यमुना के प्रदूषण का भयावह जिक्र था और ये सामने आया था कि नदी का प्रदूषण अब अपने जल में रहने वाली मछलियों के लिए ही खतरा बन रहा है.

जब बड़े पैमाने पर तट पर मिली थीं मरी हुई मछलियां

इस रिसर्च पेपर में साल 2002 की उस बड़ी घटना का जिक्र है, जिसने यमुना में प्रदूषण की समस्या को उभार कर सामने रखा था और ये भी बयां किया कि पानी अब सिर से ऊपर जा चुका है. रिपोर्ट में लिखा है ‘यमुना में प्रदूषण का स्तर 13 जून 2002 की घटना से समझा जा सकता है, जब सिकंदरा (ताजमहल क्षेत्र) में हजारों मरी हुई मछलियां पाई गईं. इसके बाद बटेश्वर (आगरा से 78 किमी दूर) तक कई इलाकों से इसी तरह की घटनाओं की खबरें आईं. हर साल यमुना में मछलियों के मरने की खबरें आती रहती हैं, जो इसके गंभीर प्रदूषण का स्पष्ट संकेत है. दिल्ली के भी तटवर्ती इलाकों में कई जगह यमुना के जल से ऑक्सीजन बिल्कुल खत्म हो चुकी है.’ साल 2001 में ही ये हालत हो गई थी कि 70% से अधिक प्रदूषण केवल दिल्ली में ही आकर इस नदी में मिल जाता है और इसका मुख्य कारण हैं औद्योगिक कचरा, घरेलू गंदगी और बिना ट्रीट किए गए सीवेज का गिरना इसके मुख्य कारण हैं.

हालत यह है कि दिल्ली के वजीराबाद से ओखला तक यमुना नदी का 22 किमी का हिस्सा (जो इस नदी की लंबाई का दो प्रतिशत से भी कम है) सबसे ज्यादा प्रदूषित है और नदी के कुल प्रदूषण में लगभग 76 प्रतिशत योगदान इस क्षेत्र का है. हर दिन राजधानी के 18 बड़े नालों के जरिये 350 लाख लीटर से अधिक गंदा पानी और अनट्रीटेड सीवेज सीधे यमुना में बहाया जाता है. इस गंदे पानी में फास्फेट और एसिड भी होता है जिससे पानी में जहरीला झाग बनता है जो एक गंभीर चिंता का विषय है.

पिछले चार सालों में बढ़ा फेकल कोलीफार्म का लेवल

यमुना को लेकर बहुत पुरानी बात करने की जरूरत नहीं है. साल 2020 से साल 2024 (सिर्फ बीते 4 चार साल)तक  में नदी को इतना प्रदूषित किया गया है कि यह बीते 20 साल की वृद्धि के बराबर है. फेकल कोलीफार्म का स्तर पिछले चार वर्षों में सबसे अधिक है. यह प्रदूषण पानी में मल-मूत्र मिलने से होता है. इससे स्पष्ट है कि नदी में अनट्रीटेड सीवेज गिर रहा है. पानी में फेकल कोलीफार्म का स्तर प्रति 100 मिलीलीटर 500 सर्वाधिक संभावित संख्या (एमपीएन) होना चाहिए.

इसका स्तर 2,500 एमपीएन पहुंचने पर यह उपयोग लायक नहीं रह जाता है. यमुना जब दिल्ली में प्रवेश करती है तो पल्ला में फेकल कोलीफार्म का स्तर मात्र 1,100 एमपीएन रहता है. वहीं, असगरपुर में यह 79,00,000 एनपीएन तक पहुंच गया है. असगरपुर से पहले शाहदरा व तुगलकाबाद ड्रेन यमुना में गिरता है. नदी के पानी को स्वच्छ बनाए रखने के लिए जरूरी ऑक्सीजन (डीओ) की मात्रा अधिकांश जगहों पर जीरो है. यही ऑक्सीजन मछलियों और अन्य जलीय जीवों को जीवित रहने के लिए जरूरी है.

यमुना में प्रदूषण के कारण एक और बड़ी समस्या देखी जाती है, वह है झाग बनने की समस्या. बारिश के बाद के सीजन और सर्दियों की शुरुआत से पहले के महीनों में हर साल ये नजारा आम है. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर में कोटक स्कूल ऑफ सस्टेनेबिलिटी के डीन प्रोफेसर सच्चिदानंद त्रिपाठी ने इस बारे में आजतक को बताया था कि यमुना में झाग बनने के पीछे कई कारक जिम्मेदार हैं.

यमुना नदी

अनट्रीटेड सीवेज है प्रदूषण का बड़ा कारण

इनमें पहला और बड़ा कारण तो अनट्रीटेड सीवेज है, वहीं यमुना में प्रवेश करने वाले पानी का लगभग दो-तिहाई हिस्सा ऐसा ही प्रदूषित है. यानी प्रतिदिन लगभग 2 अरब लीटर अनट्रीटेड वाटर. यह गंदा जल सर्फेक्टेंट से भरा होता है और ये केमिकल आमतौर पर डिटर्जेंट और औद्योगिक उत्सर्जन में पाए जाते हैं. सर्फेक्टेंट में पानी के सतही तनाव को कम करने का अनूठा गुण होता है, जो झाग बनने में मदद करता है. जब ऐसा अनुपचारित पानी तापमान और प्रवाह गतिशीलता जैसी अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों से मिलता है तो नदी में झाग बनने लगता है. ये समझिए कि ये झाग यमुना का प्रदूषण ही है जो खुलकर सामने आ जाता है.

झाग में मौजूद सर्फेक्टेंट और जहरीले रसायन जलीय जीवों, खास तौर पर मछलियों की कोशिकीय झिल्लियों को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे मृत्यु दर और प्रजनन संबंधी चुनौतियां पैदा होती हैं. इसके अलावा पानी में ऑक्सीजन की कमी के कारण मछलियों और अन्य एरोबिक जीवों का दम घुट सकता है. पोषक तत्वों की अधिकता से उत्पन्न शैवालों के खिलने से भी विषाक्त पदार्थ बनते हैं, जिससे जलीय जीवन खतरे में पड़ जाता है और पानी मानव उपयोग के लिए असुरक्षित हो जाता है. ये झाग पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाता है. मछलियों और विभिन्न जलीय प्रजातियों की मौत हो जाती है और पानी के भीतर की खाद्य श्रृंखला भी गड़बड़ा जाती है. यह जलीय जीवन चक्र में भारी असंतुलन पैदा करता है.

प्रदूषण और पानी की किल्लत

दिल्ली में पीने के पानी की किल्लत, जो हर साल सामने आती है, उसकी भी एक बड़ी वजह यमुना नदी का प्रदूषण है. हर साल यमुना में अमोनिया का स्तर बढ़ने की खबरें सामने आती हैं. यमुना नदी में अमोनिया की मात्रा बढ़ने से कई बार पानी की आपूर्ति बंद करनी पड़ती है. भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के मुताबिक, पीने के पानी में अमोनिया की मात्रा 0.5 पीपीएम से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. यमुना में अमोनिया का स्तर कई बार 8 पीपीएम तक पहुंच जाता है. दिल्ली जल बोर्ड के पास पानी साफ करने की क्षमता 0.9 पीपीएम तक ही है. यमुना में अमोनिया का स्तर बढ़ने से दिल्ली के कई इलाकों में पानी की किल्लत हो जाती है. यमुना में अमोनिया का हाई लेवल, पानी में ज्यादा औद्योगिक लोड या सीवेज का संकेत है. यमुना में अमोनिया की मात्रा बढ़ने की वजह से, चंद्रावल, सोनिया विहार, और वजीराबाद प्लांट में पानी का उत्पादन बाधित हो जाता है.

सफाई के प्रयास कई हुए, लेकिन नतीजा?

ये तो हुईं समस्याएं और उनकी शुरुआत कबसे हुई, इसकी जानकारी, लेकिन यमुना की सफाई को लेकर कभी कोई सरकार प्रयास हुआ या नहीं, तो इसका जवाब है कि प्रयास तो कई हुए हैं, सरकारी धन की भी बड़ी राशि खर्च हुई है, लेकिन किसी भी प्रयास का कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है. इसकी शुरुआत करें तो साल 1977 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की स्थापना होने के बाद से ही यमुना के पानी की जांच, केमिकल टेस्ट वगैरह हो रहे हैं और यह बात पब्लिक डोमेन में आ गई थी कि यमुना औद्योगिक कचरों के साथ-साथ मानव मल-मूत्र से भी दूषित है.

यमुना नदी की दशा सुधारने के लिए 1993 में यमुना एक्शन प्लान बनाया गया. इस योजना के तहत 25 वर्षो के दौरान 1514 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए जा चुके हैं. बात अगर दिल्ली सरकार की करें तो यमुना की सफाई के लिए 2018 से 2021 के बीच करीब 200 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे. कागजों पर तो इस नदी की हालत सुधारने को इतना पैसा खर्च हो चुका है, जिसका कोई जोड़ नहीं है, लेकिन नदी की हालत कितनी सुधरी? ये सवाल सरकारी तंत्र और उसकी ‘ईमानदार’ कोशिश की सच्चाई की चुगली करता है.

यमुना की सफाई के लिए क्या कोशिशें हुईं, एक नजर में पूरा ब्यौरा

 

1. यमुना एक्शन प्लान को अप्रैल 1993 में शुरू किया गया. इसमें दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के 21 शहर शामिल थे. वर्ष 2002 तक इसमें कुल खर्च 682 करोड़ रुपये.

2. यमुना एक्शन प्लान (2) – वर्ष 2012 में शुरू कुल खर्च 1,514.70 करोड़ रुपये.

3. यमुना एक्शन प्लान चरण (3) – अनुमानित खर्च 1,656 करोड़ रुपये. इस चरण में दिल्ली में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और ट्रंक सीवर का पुनर्वास और उन्नयन शामिल है.

4. वर्ष 2015 से वर्ष 2023 तक केंद्र सरकार ने यमुना की सफाई के लिए दिल्ली जल बोर्ड को नेशनल मिशन फार क्लीन गंगा के अंतर्गत 1,000 करोड़ रुपये और यमुना एक्शन प्लान-3 के अंतर्गत 200 करोड़ रुपये दिए गए थे.

5. आम आदमी पार्टी की सरकार ने वर्ष 2015 में दिल्ली की सत्ता में आने के बाद से 700 करोड़ रुपये यमुना की साफ-सफाई पर खर्च किया.

6. जल शक्ति मंत्रालय ने 11 परियोजनाओं के लिए 2361.08 करोड़ रुपये दिए.

7. यमुना नदी के कायाकल्प के लिए एनजीटी की ओर से जनवरी, 2023 में दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना की अध्यक्षता में हाई लेवल कमेटी गठित की गई थी. नजफगढ़ ड्रेन सहित यमुना के कुछ क्षेत्र की सफाई अभियान शुरू किया गया था. बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दिल्ली के मुख्य सचिव को समिति का अध्यक्ष बनाया गया.

दिल्ली में यमुना का प्रदूषण और ‘जहर’ की सियासत

दिल्ली में चुनावी मौसम आया तो यमुना का प्रदूषण भी तमाम मुद्दों के बीच उछल कर आया. पूर्व सीएम केजरीवाल ने यमुना के पानी में जहर की बात कहकर इसे और अधिक चर्चा में ला दिया. हालांकि दिल्ली जल बोर्ड ने इस पर बयान जारी कर यमुना में जहर की बात का खंडन किया था. दिल्ली के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर उन्होंने केजरीवाल के इन आरोपों को तथ्यहीन, निराधार और भ्रामक बताया.

शिल्पा शिंदे ने पत्र में कहा है कि इस प्रकार के झूठे बयान दिल्लीवासियों में डर फैलाने का काम करते हैं और साथ ही यह राज्यों के बीच संबंधों पर नकारात्मक असर डालते हैं. उन्होंने इस मामले को उपराज्यपाल के ध्यान में लाने का अनुरोध किया, क्योंकि यह इंटरस्टेट रिलेशन पर असर डाल सकता है. पत्र में कहा गया कि आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने हाल ही में मीडिया में यह बयान दिया था कि हरियाणा सरकार ने दिल्ली पहुंचने वाले कच्चे पानी में जहर छोड़ दिया है. इसके अलावा, उन्होंने चुनाव आयोग को एक पत्र भी लिखा था, जिसमें इसे ‘जल आतंकवाद’ करार दिया था. जल बोर्ड ने केजरीवाल के इन बयानों को पूरी तरह से गलत और भ्रामक बताया है.

दिल्ली जल बोर्ड ने यह स्पष्ट कर दिया कि यमुना में अमोनिया का स्तर सर्दियों के मौसम में अक्टूबर से फरवरी के बीच स्वाभाविक रूप से बढ़ जाता है. जल बोर्ड के जल उपचार संयंत्र 1 पीपीएम तक के अमोनिया को ठीक से उपचारित करने के लिए डिजाइन किए गए हैं. इसके अलावा, 2 से 2.5 पीपीएम तक के अमोनिया का उपचार उच्च अमोनिया वाले पानी को दिल्ली सब ब्रांच और कैरियर लाइन चैनल से प्राप्त पानी से मिलाकर किया जाता है.

कैसे बढ़ जाता है अमोनिया

जल बोर्ड के अनुसार यमुना में अमोनिया का स्तर तब बढ़ता है जब उपयुक्त जल प्रदूषण या औद्योगिक अपशिष्टों का मिश्रण नदी के ऊपरी हिस्से में होता है, खासकर वजीराबाद बैराज से पहले. सर्दियों में मानसून के बाद, यमुना में पानी की धारा कम हो जाती है, जिसके कारण अपशिष्ट पानी को पर्याप्त रूप से घुलने का मौका नहीं मिलता और अमोनिया का स्तर बढ़ जाता है.

पर्यावरणविद प्रोफेसर सीआर बाबू यमुना की दुर्दशा पर चिंता जाहिर करते हुए कहते हैं कि, यमुना नदी का पानी बहुत ज्यादा गंदा हो चुका है. इसकी सबसे बड़ी वजह दिल्ली का गंदा पानी, घरेलू और औद्योगिक कचरा है, जो बिना साफ किए नदी में छोड़ दिया जाता है. वजीरपुर जैसे इलाकों से भी कारखानों का गंदा पानी इसमें मिल रहा है. फॉस्फेट वाले डिटर्जेंट की वजह से नदी में झाग बनता है. जनसंख्या बढ़ने और सफाई के सही तरीके न अपनाने से प्रदूषण और बढ़ता जा रहा है. पहले यमुना का पानी पीने लायक था, लेकिन अब इसमें जिस तरह के जहरीले रासायनिक तत्व शामिल हो गए हैं, इससे यह न खेती के लिए सही है और न ही जलीय जीवों के लिए सुरक्षित. यमुना की गंदगी के लिए हम सब जिम्मेदार हैं और इसे किसी सियासी नजर और आरोप-प्रत्यारोप के नजरिए से हटकर अपनी जिम्मेदारी के तौर पर देखना चाहिए.

नदियों के पारिस्थितिक तंत्र पर खूब काम करने वाले पर्यावरण विद अनुपम मिश्र ने भी एक मीडिया बातचीत में कहा था, ‘हिंदुस्तान का जिस तरह का मौसम चक्र है उसमें हर नदी चाहे वो कितनी भी प्रदूषित क्यों न हो, साल में एक बार बाढ़ के वक्त खुद को फिर से साफ कर लेती है, पर इसके बाद हम फिर से इसे गंदा कर देते है, तो हमें नदी साफ करने की बजाय इसे गंदा करना बंद करना पड़ेगा.’

यमुना की सफाई ढाक के तीन पात होने की एक वजह शायद यह भी हो कि, अब तक के सारे प्रयास गलत दिशा में हो रहे हैं. नदी को साफ करने की जरूरत नहीं है, बल्कि जरूरत है कि नदी में गंदगी न डाली जाए, इसे गंदा न किया जाए. कोरोना काल के दौर की ही रिपोर्ट देखें, जब सामने आया था कि इस दौरान यमुना का पानी सिर्फ एक ट्रीटमेंट के बाद पीने लायक हो गया था. लॉकडाउन से दौरान यमुना नदी के ओखला बैराज में पानी की क्वॉलिटी में सुधार होने से नदी का बीओडी (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड) 28 मिलीग्राम प्रति लीटर तक हो गया था,यानी पानी की गुणवत्ता इतनी बेहतर हो गई कि इंसानों के साथ ही पानी में जलीय जीव भी सुरक्षित हो गए थे.

विडंबना है कि आज यमुना सियासत में सिर्फ एक गेंद की तरह हो गई है. जिसे सिर्फ एक पाले से दूसरे पाले में उछाला जा रहा है.

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